आज के समय में ओटीटी प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया पर दिखाए जाने वाले कुछ कंटेंट को लेकर देश में चिंता जताई जा रही है। विशेष रूप से बच्चों और किशोरों पर इसके प्रभाव को लेकर कई पक्षों ने गंभीर सवाल उठाए हैं। बच्चों के हाथों में स्मार्टफोन की उपलब्धता ने कंटेंट की निगरानी की आवश्यकता को और बढ़ा दिया है।
फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, नेटफ्लिक्स और अमेज़न प्राइम जैसे प्लेटफॉर्म्स आज हर मोबाइल में पाए जाते हैं। माता-पिता बच्चों को स्मार्टफोन दे तो देते हैं, लेकिन उसमें मौजूद कंटेंट की निगरानी अक्सर नहीं कर पाते। नतीजन, बच्चों पर इसका नकारात्मक असर पड़ सकता है। इसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर गंभीरता दिखाई है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को जारी किया नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार, ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और सोशल मीडिया कंपनियों को नोटिस जारी किया है। याचिका में बच्चों पर संभावित नकारात्मक प्रभाव वाले कंटेंट को सीमित करने की मांग की गई है।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील विष्णु शंकर जैन की दलीलें सुनने के बाद कहा कि इस विषय में सभी संबंधित पक्षों से जवाब मांगा जाएगा। याचिका में यह मांग की गई है कि ऐसे कंटेंट को नियंत्रित करने के लिए ठोस नीति बनाई जाए, जिससे बच्चों की मानसिकता पर कोई गलत असर न पड़े।
भारत सरकार और प्रमुख प्लेटफॉर्म्स से जवाब तलब
इस मामले में भारत सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता भी सुप्रीम कोर्ट में मौजूद थे। कोर्ट ने प्रमुख ओटीटी और सोशल मीडिया कंपनियों जैसे नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम, मेटा (फेसबुक), गूगल, ऑल्ट बालाजी आदि से जवाब मांगा है।
निष्कर्ष:
यह मामला देश में डिजिटल मीडिया के ज़िम्मेदार उपयोग की ओर एक गंभीर कदम है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला डिजिटल कंटेंट की पारदर्शिता और बाल सुरक्षा के लिए एक सकारात्मक पहल मानी जा रही है।